शनिवार, 14 सितंबर 2024

तीन दिवसीय प्रशिक्षण एवं कृषि उपकरणों के वितरण कार्यक्रम का सफल आयोजन

 


केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में तीन दिवसीय प्रशिक्षण एवं कृषि उपकरणों के वितरण कार्यक्रम का सफल आयोजन

 भोपाल. केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल ने 11 से 13 सितम्बर, 2024 के बीच ग्रामीण लाभार्थियों के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। यह कार्यक्रम अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत उच्च उत्पादकता और उद्यमिता विकास के लिए उन्नत कृषि अभियांत्रिकी पर केंद्रित था। इसका उद्देश्य अनुसूचित जाति के जरूरतमंद किसानों को कृषि अभियांत्रिकी और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाना और जागरूकता बढ़ाना था। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से भोपाल जिले के तारासेवनिया और पृथ्वीपुरा गांव के लाभार्थी शामिल थे।

प्रशिक्षण के दौरान, प्रतिभागियों को कृषि अभियांत्रिकी के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि यंत्रों एवं उनके रखरखाव, कृषि उत्पाद प्रसंस्करण, कृषि ऊर्जा, सूक्ष्म सिंचाई एवं जल के महत्त्व पर प्रशिक्षण दिया गया। 12 सितम्बर 2024 को, प्रशिक्षण के दूसरे दिन, संस्थान द्वारा विकसित हस्तचालित उपकरण जैसे ट्विन व्हील हो (Twin wheel hoe), कपास के डंठल खींचने का यंत्र, और मक्का शेलर (maize sheller) का वितरण सभी प्रतिभागियों में किया गया, जिससे लगभग 117 ग्रामीणों को सीधा लाभ हुआ।

तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन 13 सितम्बर, 2024 को हुआ। समापन समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. एस. मंगराज और अन्य वैज्ञानिक जैसे डॉ. दिलीप पवार और डॉ. मुकेश कुमार उपस्थित थे। गांव के सरपंच/जनपद सदस्य श्री दीवान सिंह अहिरवार ने किसानों को प्रशिक्षण में सक्रिय भागीदारी करने और इस अवसर का भरपूर लाभ उठाने पर बधाई दी एवं संस्थान का आभार प्रकट किया। प्रतिभागियों ने भी इस योजना के लाभों पर संतुष्टि व्यक्त की और भविष्य में भी संस्थान से जुड़े रहने का आश्वासन दिया। अंत में, सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए।



तीन दिवसीय प्रशिक्षण एवं कृषि उपकरणों के वितरण कार्यक्रम का सफल आयोजन

 


केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में तीन दिवसीय प्रशिक्षण एवं कृषि उपकरणों के वितरण कार्यक्रम का सफल आयोजन

भोपाल. भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल ने 11 से 13 सितम्बर, 2024 के बीच ग्रामीण लाभार्थियों के लिए तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। यह कार्यक्रम अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत उच्च उत्पादकता और उद्यमिता विकास के लिए उन्नत कृषि अभियांत्रिकी पर केंद्रित था। इसका उद्देश्य अनुसूचित जाति के जरूरतमंद किसानों को कृषि अभियांत्रिकी और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाना और जागरूकता बढ़ाना था। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से भोपाल जिले के तारासेवनिया और पृथ्वीपुरा गांव के लाभार्थी शामिल थे।

प्रशिक्षण के दौरान, प्रतिभागियों को कृषि अभियांत्रिकी के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि यंत्रों एवं उनके रखरखाव, कृषि उत्पाद प्रसंस्करण, कृषि ऊर्जा, सूक्ष्म सिंचाई एवं जल के महत्त्व पर प्रशिक्षण दिया गया। 12 सितम्बर 2024 को, प्रशिक्षण के दूसरे दिन, संस्थान द्वारा विकसित हस्तचालित उपकरण जैसे ट्विन व्हील हो (Twin wheel hoe), कपास के डंठल खींचने का यंत्र, और मक्का शेलर (maize sheller) का वितरण सभी प्रतिभागियों में किया गया, जिससे लगभग 117 ग्रामीणों को सीधा लाभ हुआ।

तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन 13 सितम्बर, 2024 को हुआ। समापन समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. एस. मंगराज और अन्य वैज्ञानिक जैसे डॉ. दिलीप पवार और डॉ. मुकेश कुमार उपस्थित थे। गांव के सरपंच/जनपद सदस्य श्री दीवान सिंह अहिरवार ने किसानों को प्रशिक्षण में सक्रिय भागीदारी करने और इस अवसर का भरपूर लाभ उठाने पर बधाई दी एवं संस्थान का आभार प्रकट किया। प्रतिभागियों ने भी इस योजना के लाभों पर संतुष्टि व्यक्त की और भविष्य में भी संस्थान से जुड़े रहने का आश्वासन दिया। अंत में, सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरित किए गए।


रविवार, 1 अगस्त 2021

भारत में बिना खाद के इस विशेष पौधे की शुरू हुई खेती


डॉ अनवर खान, एमके न्यूज़

www.mehnatkashkisan.com

दिल्ली। भारत में कैमोमाइल पौधे की खेती जोर शोर से शुरु हो गई है। इसमें बिना खाद के पौधे तैयार हो जाते हैं। और अन्य फसलों की खेती की तुलना में इसका उत्पादन भी हो रहा है। यह पूरी तरह जैविक उत्पाद है।अगर एक बार यह पौधा लग गया तो किसी प्रकार के खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. यह पूरी तरह से जैविक उत्पाद है. इसी वजह से पूरी दुनिया में इसकी मांग है.भारत में शुरू हुई है इस विशेष पौधे की खेती, नहीं पड़ती खाद की जरूरत और 25 दिन में तैयार हो जाती है फसल

कैमोमाइल के पौधे

औषधीय पौधा कैमोमाइल की दुनिया के कई देशों में खेती होती है. अब अपने देश में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के अलावा कुछ अन्य राज्यों के किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी है. कैमोमाइल की लाजवाब खुशबू और दिमाग को आराम देने का गुण इस औषधीय पौधे को बहुत ही खास बना देता है. कैमोमाइल एक ऐसा पौधा है, जिसका जिक्र दुनिया की कई प्राचीनतम संस्कृतियों में है. प्राचीन मिस्र, यूनान, यूरोपीय देशों से लेकर बौद्ध भिक्षुओं तक इस औषधीय पौधे के आगे नतमस्तक रहे हैं और इसे ईश्वर का वरदान मानते आए हैं.


अगर आप भी इस बेहद खास औषधीय पौधे की खेती करने की योजना बना रहे हैं तो हम आपको इससे संबंधित जानकारी देते हैं. अगर कोई ऐसी जमीन है, जिस पर पानी का ठहराव नहीं होता है और आप उस पर पारंपरिक फसलों की खेती नहीं कर रहे हैं तो यहां पर कैमोमाइल की खेती कर सकते हैं.

कैमोमाइल की खेती के लिए इन बातों का रखें ध्यान

अगर आप उपजाऊं जमीन पर खेती करने की सोच रहे हैं तो जाहिर है कि लाभ भी उतना ही मिलेगा. कैमोमाइल की खेती करने के लिए देसी खाद यानी गोबर की खाद या जैविक खाद को मिट्टी में मिलाकर जुताई करनी चाहिए. फिर पाटा लगाकर सूखे खेत में पौधों की बुवाई करनी चाहिए. बुवाई के साथ-साथ पानी डालना जरूरी है.

अगर आप ज्यादा पैदावार हासिल करना चाहते हैं तो खेत में क्यारी जरूर बनाएं और नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करते रहें. कैमोमाइल की फसल जब खेत में हो तब खेत में किसी भी प्रकार का खर-पतवार नहीं रहना चाहिए.

नर्सरी में बीजों में उगाकर खेत में रोपाई करने के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 750 ग्राम बीज की औसत रूप से जरूरत होती है. अक्टूबर-नवंबर के महीने में नर्सरी द्वारा कैमोमाइल का पौध तैयार करते हैं. पौध तैयार होने के बाद नवंबर के मध्य में कैमोमाइल की खेती के लिए 50/30 सेंटी मीटर के अंतराल पर पौधों की बुवाई करते हैं.

रोपाई के 25 दिन बाद कर सकते हैं तुड़ाई

किसान भाई सीधी बीजाई कर के भी कैमोमाइल की खेती कर सकते हैं, लेकिन इसमें अधिक बीज की जरूरत पड़ती है. वहीं बीजों से नर्सरी बनाकर रोपाई करने से परिणाम अच्छे मिले हैं, इसीलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे इसी विधि से कैमोमाइल की खेती करें.

अगर एक बार कैमोमाइल का पौधा लग गया तो किसी प्रकार के खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. कैमोमाइल का पौधा पूरी तरह से जैविक उत्पाद है. इसी वजह से पूरी दुनिया में इसकी मांग है. कैमोमाइल के पौधे में कीट भी नहीं लगते. यहीं कारण है कि कीटनाशक के छिड़काव की जरूरत नहीं पड़ती है और न ही मिट्टी में किसी प्रकार का कीटनाशक डाला जाता है.

25 दिन बाद ही कैमोमाइल के पौधों में फूल लग जाती है और उसी समय पहली तुड़ाई कर ली जाती है. कैमोमाइल पौधों की एक फसल में 5 से 6 बार फूलों की कटाई की जा सकती है.

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

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बुधवार, 14 जनवरी 2009

जीवन क्या कहता है ?

जीवन तीन चीजो से मिलकर बना है
शरीर , आत्मा और दुनिया !
जीवन इन तीनो को बड़े ही प्यार से समझने को कहता है ।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

जिन्दगी क्या है ?

जिन्दगी एक सुनहरा प्यार है

जिन्दगी एक सुनहरी चाहत है

जिन्दगी एक सुनहरा मिलाप है

जिन्दगी एक सुनहरा सपना है

जिन्दगी एक सुनहरी सुबह है

जिन्दगी एक सुनहरी शाम है

जिन्दगी एक सुनहरी माँ है

जिन्दगी एक सुनहरा पिता है

जिन्दगी एक सुनहरी बहन है

जिन्दगी एक सुनहरा भाई है

जिन्दगी एक सुनहरा परिवार है

जिन्दगी एक सुनहरा समाज है

जिन्दगी एक सुनहरा जहाँन है

जिन्दगी एक सुनहरा जद्दोजहद है

जिन्दगी एक सुनहरी दुनिया है